April 10, 2011

मेक्सिकन बीटल


मेक्सिकन बीटल! जी हाँ, यह वही निरामिष कीड़ा है जो दुनिया भर में कांग्रेस घास की पत्तियां खाने के लिए मशहूर है। उसी कांग्रेस घास की जो कभी आज़ादी की सुखद: सांस लेने पीएल-480 स्कीम के तहत आयातित मैक्सिकन गेहूं के बीज के साथ भारत में आया था। गणतंत्र में घोडा हो या घास, सभी कों फलने-फूलने के समान अवसर होते है। इन्ही अवसरों का भरपूर लाभ उठाते हुए यह घास भी हिंदुस्तान में चारों ओर छा गया। बस्ती हों या बीहड़, उर्वरा हों या बंजर, सार्वजनिक पार्कों, आवासीय कालोनियों, बगीचों, सडक के किनारों, कच्चे रास्तों, नहर, नालियों व रेलवे पटरियों आदि के साथ-साथ लाखों हेक्टेयर भूमि पर कब्ज़ा जमा कर घोड़ों कों पटकनी देने में सफल हुआ है। अब अपने देश के तरक्की-पसंदों कों इस घास की अप्रत्याशित प्रगति कहाँ पसंद आनी थी? इसीलिए इसे नियंत्रित करने के चहुमुखी प्रयास हुए। एक से बढकर एक जहरीले खरपतवारनाशियों का सहारा लिया गया, इसे समूल नष्ट करने के लिए जनअभियान चलाये गये। पर सब बेकार और यह घास हमें यूँ ही ठोसे दिखाता रहा। हम भी कहाँ हार मानने वाले थे? इस घास पर अंकुश लगाने के लिए एक मेक्सिकन बीटल ढूंढ़ लाये। वैसे तो इस पर्णभक्षी भुंड की दुनिया में 100 के लगभग प्रजातियाँ पाई जाती हैं पर हमारे यहाँ कांग्रेस घास पर देखी जाने वाली मेक्सिकन बीटल को  जीवों की नामकरण-प्रणाली में Zygogramma bicolrata कहा जाता है। खुद भी शुद्ध शाकाहारी और गर्ब खे जाने वाले इसके बच्चे भी शुद्ध शाकाहारी.

August 16, 2009

कांग्रेस घास और मांसाहारी कीट- बिन्दुआ बुगडा


बिन्दुआ बुगडा एक मांसाहारी कीट है जो अपना गुजर-बसर दुसरे कीटों का खून चूस कर करता है। कांग्रेस घास पर यह कीट दुसरे कीटों की तलाश में ही आया है। कांग्रेस ग्रास के पौधों पर इसे मिलीबग, मिल्क-वीड बग़ व जाय्गोग्राम्मा बीटल आदि शाकाहारी कीट व इनके शिशु व अंडे मिल सकते है। इन शाकाहारी कीटों के अलावा कीटाहारी कीट भी मिल सकते है। इन सभी मध्यम आकर के कीटों का खून चूस कर ही बिन्दुआ बुगडा व इसके बच्चों का कांग्रेस घास पर गुजरा हो पाता है।
स्टिंक बग़ की श्रेणी में शामिल इस बिन्दुआ बुगडा को अंग्रेज "two spotted bug" कहते हैं। कीट वैज्ञानिक इसे द्विपदी प्रणाली के मुताबिक "Perillus bioculatus" कहते हैं। इस बुगडे के परिवार का नाम "Pentatomidae" है।
इन बिन्दुआ बुगडों का शरीर चौड़ा व शिल्ड्नुमा होता है। शरीर कि लम्बाई पौन इंच तक होती है। इंसानों द्वारा छेड़े जाने पर ये बिन्दुआ बुगडे बेचैन करने वाली तीक्ष्ण गंध छोड़ते हैं। इस गंध रूपी हथियार को ये कीट दुसरे कीटों से अपना बचाव करने में भी इस्तेमाल करते हैं। आलू की फसल को नुकशान पहुचने वाली कोलोराडो बीटल के तो ग्राहक होते है ये बिन्दुआ बुगडे। इसी जानकारी का फायदा उठाकर कीटनाशी उद्योग द्वारा इन बुगडों को भी जैविक-नियंत्रण के नाम पर बेचा जाने लगा है। साधारण से साधारण जानकारी को भी मुनाफे में तब्दील करना कोई इनसे सीखे।











July 06, 2009

कांग्रेस घास, मिलीबग व परजीवी सम्भीरकाएं

कांग्रेस घास, जी हाँ! वही कांग्रेस घास जिसे कभी ख़त्म करने के लिए कृषि वैज्ञानिकों व उनकी चहेती बीटल जाय्गोग्रामा ने ताणे तक तुडवा लिए थे मगर पार नहीं पड़ी थी। पर समय सदा एकसा नही रहता। कपास की साधारण किस्मों की जगह बी.टी. हाइब्रिडों का प्रचलन हुआ। इसके साथ ही कपास की फसल में फिनोकोक्स सोलेनोप्सिस नाम का मिलीबग भस्मासुर बन कर सामने आया और देखते-देखते ही कांग्रेस घास के पौधों पर भी छा गया। संयोग देखिये, अमेरिकन कपास, कांग्रेस घास व मिलीबग का निकासी स्थल एक ही है। हिंदुस्तान में आते ही मिलीबग को कांग्रेस घास के रूप में पूर्व परिचित, एक सशक्त वैकल्पिक आश्रयदाता मिल गया। किसानों के घातक कीटनाशकों से पुरा बचाव व सारे साल अपने व बच्चों के लिए भोजन का पुरा जुगाड़। पर प्रकृति की प्रक्रियाएं इतनी सीधी व सरल नही होती। बल्कि इनमेँ तो हर जगह हर पल द्वंद्व रहता है। प्रकृति में सुस्थापित भोजन श्रृंख्ला की कोई भी कड़ी इतनी कमजोर नही होतीं कि जी चाहे वही तोड़ दे। फ़िर इस मिलीबग कि तो बिसात ही क्या जिसकी मादा पंखविहीन हो तथा अन्डे थैली में देती हो। जिला जींद की परिस्थितियों में ही सात किस्म की लेडी बिटलों, पांच किस्म की मकडियों व पांच किस्म के बुगडों आदि परभक्षियों के अलावा तीन किस्म की परजीवी सम्भीरकाओं ने मिलीबग को कांग्रेस घास पर ढूंढ़ निकाला। यहाँ स्थानीय परिस्थितियों में मिलीबग को परजीव्याभीत करने वाली अंगीरा, जंगीरा व फंगीरा नामक तीन सम्भीरकाएं पाई गई है। इनमेँ से अंगीरा ने तो कांग्रेस घास के एक पौधे पर मिलीबग की पुरी आबादी को ही परजीव्याभीत कर दिया है। इस तरह की घटना कम ही देखने में आती है। मिलीबग नियंत्रण के लिए प्रकृति की तरफ़ से कपास उत्पादक किसानों के लिए एनासिय्स नामक सम्भीरका एक गजब का तोहफा है। भीरडनूमा महीन सा यह जन्नोर आकर में तो बामुश्किल एक-दो मिलीमीटर लंबा ही होता है। एनासिय्स की प्रौढ़ मादा अपने जीवनकाल में सैकडों अंडे देती है पर एक मिलीबग के शरीर में एक ही अंडा देती है। इस तरह से एक एनासिय्स सैकडों मिलिबगों को परजीव्याभीत करने का मादा रखती है। मिलीबग के शरीर में एनासिय्स को अंडे से पूर्ण प्रौढ़ विकसित होने में तकरीबन 15 दिन का समय लगता है। इसीलिए तो एनासिय्स को अंडे देते वक्त मिलीबग की ऊमर का ध्यान रखना पड़ता है। गलती से ज्यादा छोटे मिलीबग में अंडा दिया गया तो प्रयाप्त भोजन के आभाव में मिलीबग के साथ-साथ एनासिय्स की भी मौत हो जाती है। खुदा न खास्ता एनासिय्स ने अपना अंडा एक इसे ऊमर दराज मिलीबग के शरीर में दे दिया जिसकी जिन्दगी दस दिन की भी न रह रही हो तो भी एनासिय्स के पूर्ण विकसित होने से पहले ही मिलीबग की स्वाभाविक मौत हो जायेगी। परिणाम स्वरूप एनासिय्स की भी मौत हो जायेगी। इसीलिए तो एनासिय्स का पुरा जोर रहता है कि अंडा उस मिलीबग के शरीर में दिया जाए जिसकी जिन्दगी के अभी कम से कम 15 दिन जरुए बच रहे हों। अंडा देने के लिए सही मिलीबग के चुनाव पर ही एनासिय्स की वंश वृध्दि की सफलता निर्भर करती है। मिलीबग के शरीर में अंड विस्फोटन के बाद ज्योंही एनासिय्स का शिशु मिलीबग को अंदर से खाना शुरू करता है, मिलीबग गंजा होना शुरू हो जाता है। इसका रंग भी लाल सा भूरा होना शुरू हो जाता है। मिलीबग का पाउडर उड़ना व इसका रंग लाल सा भूरा होना इस बात की निशानी है कि मिलीबग के पेट में एनासिय्स का बच्चा पल रहा है। मिलीबग को अंदर से खाते रह कर एक दिन एनासिय्स का किशोर मिलीबग के अंदर ही प्युपेसन कर लेता है। फ़िर एक दिन पूर्ण प्रौढ़ के रूप में विकसित होकर मिलीबग के शरीर से बाहर आने के लिए गोल सुराख़ करेगा। इस सुराख़ से एनासिय्स अपना स्वतन्त्र प्रौढिय जीवन जीने के लिए मिलीबग के शरीर से बहर निकलेगा। और इस प्रक्रिया में मिलीबग को मिलती है मौत तथा अब वह रह जाता सिर्फ़ खाली खोखा। यहाँ एनासिय्स यानि कि अंगीरा के जीवन कि विभिन्न अवस्थाओं के फोटों दी गई है। कांग्रेस घास सम्मेत विभिन्न गैरफसली पौधे जो मिलीबग के लिए आश्रयदाता है, एनासिय्स कि वंश वृध्दि के लिए भी वरदान है क्योंकि इन्हे इन पौधों पर अपनी वंश वृध्दि के लिए मिलीबग बहुतायत में उपलब्ध हो जाता है।














June 03, 2009

कांग्रेस घास पर मिलीबग और चपरो


मिलीबग व् चेपे की कुशल शिकारी के रूप में जिला जींद की धरती पर नौ किस्म की बुगडी पायी गयी है. कोक्सीनेलिड्स कुल की इन बुगड़ीयों के प्रौढ़ भी मांसाहारी अर् इनके बच्चे(GRUB ) भी मांसाहारी. गजब की किसान मित्र है ये लेडी बीटल.। यूरोपियन लोग इन्हें लेडिबीटल या लेडीबग के नाम से पुकारते हैं । इनके पंखों की चमक चूड़ियों जैसी होने के कारण स्थानीय लोगों में कुछ इन्हें मनयारी कहते हैं जबकि अन्य इनके पंखों का रंग जोगिया होने के कारण इन्हें जोगन के नाम से पुकारते हैं. कवि महोदय इन कीटों को सोन-पंखी भंवरे के रूप में अलंकृत करते है. निडाना गावं की महिला किसानों ने भी अपनी यादगारी सुविधा एवं पहचान सुगमता के लिए इन नौ लेडी बीटलों के नाम लपरो(प्रौढ़, डिम्बक),सपरो(प्रौढ़), चपरो(प्रौढ़), रेपरो(प्रौढ़), हाफ्लो(गर्ब}, ब्रह्मों(प्रौढ़), नेफड़ो(प्रौढ़), सिम्मड़ो(गर्ब) और क्रिप्टो(गर्ब). इन सभी लेडी बीटलों के बालिग व शिशु जन्मजात मांसाहारी कीट होते हैं । इनके भोजन में कीटों के अंडे ,तरुण सुंडियां ,अल या चेपा ,मिलीबग ,चुरडाः ,तेला ,सफ़ेद मक्खी,फुदका आदि अनेक हानिकारक कीट शामिल होते हैं । जिन्हें ये बड़े चाव से खाते हैं । हमारे खेतों में इनकी उपस्तिथि ,कीटनाशकों पर होने वाले खर्च में कटोती करवा सकती है । कीटनाशक चाहे रासायनिक हो या फिर बी.टी.के रूप में जैविक. हम इन लेडी बीटलों को उम्दा किस्म के प्राकृतिक कीटनाशी भी कह सकते हैं क्योंकि ये कीटों को खा कार उनका सफाया करते हैं. यानी कि हमारी फसलों का कीड़ों से बचाव मुफ्त में ही करते हैं जबकि कीटनाशकों पर इसी काम के लिए हमें पैसा खर्च करना पडता है। अतः हम इनकी सही पहचान ,हिफाजत व वंशवृद्धि कर जहाँ खेती के खर्च को घटा सकते हैं वहीं कीटनाशकों के दुष्प्रभावों से मानव स्वस्थ की रक्षा कर बहुत बड़ी समाज सेवा भी कर सकते हैं। इन्हीं में से
निडाना की महिला किसानों ने इस गावं की फसलों में पाई गयी इन नौ किस्म की लेडी बीटलों की न केवल अच्छी तरह से पहचान ही की है बल्कि इन्होनें तो लेडी बीटलों के संक्षिप्त इतिहास व् क्रियाक्लापों पर एक गीत भी लिख डाला. इस गीत को वे विभिन्न अवसरों पर गाती भी हैं.
राजपुरा गावं के भू.पु.सरपंच श्री बलवान सिंह लोहान के नेतृत्त्व में महेंद्र, प्रकाश, नरेश, भीरा आदि किसानों ने काले के खेत में बी.टी.कपास की फसल पर आये एक नये कीड़े मिलीबग को चबाते हुए एक लपरो को मौके पर पकड़ा था व् इसकी वीडियो तैयार की थी. कीड़ों का कीड़ों द्वारा प्राकृतिक नियंत्रण के इस दृश्य को देखकर सभी किसान हैरान थे.

May 09, 2009

कांग्रेस घास पर मिलीबग और कोक्सिनेल्ला बीटल

जिला जींद में तो शायद ही कोई ऐसा इंसान हो जिसने कभी भी खेत में बरसीम की कटाई की हो और इस कीट के दर्शन न किए हों। बरसीम, सरसों, कपास, धान व गेहूं आदि कोई ही फसलतंत्र होगा जिसमें ये बीटल अपनी उपस्थिति दर्ज न करवाती हों। ये कीट सात्विक हैं या निरामिषी, ये यहाँ के लोगों को मालूम है या नहीं, ये हमें भी मालूम नही। लेकिन यह सत्य है कि इस लेडी बीटल के प्रौढ़ व किशोर दोनों ही मांसाहारी होते हैं। अल व मिलीबग को बड़े चाव से खाते हैं। इनके भोजन में छोटी-छोटी सुंडियां व अंडे भी शामिल होते हैं।


कांग्रेस घास पर मिलीबग का पाया जाना इनके लिए चिकित्सकों के सीजन से कम नहीं होता। एक तो किसानो द्वारा फसलों में किए जाने वाले कीटनासकों की मार से बच जाते हैं ऊपर से पेट भरने के लिए मिलीबग व उसके बच्चे खाने को मिल जाते है। ना भोजन की किल्लत और ना ही आवास का झंझट।







 कोक्सिनेल्ला  प्रौढ नाश्ते में मिलीबग को चाबते हुए। जायेगी।


अपना वंश कौन नहीं चलाना चाहता?






















कोक्सिनेल्ला का किशोर मिलीबग की थैली में बैठे बच्चों के चक्कर में।
 






























कांग्रेस घास पर मिलीबग और सिम्मडो


एक छोटी सी बीटल है ये सिम्मडो। जी, हाँ! जिला जींद के रूपगढ, राजपुरा व निडाना के किसान तो इसे इसी नाम से पुकारते हैं।जबकि कीट वैज्ञानिक इसे सिम्नस(Scymnus spp.) के तौर पर पहचानते हैं। इस बीटल के प्रौढ व गर्ब खाने-पीने के मामले में मांसाहारी होते हैं। इनके भोजन में अल, चुरडे, तेले,सफ़ेद मक्खी,स्केल-कीट, मिलीबग आदि अनेक छोटे-छोटे कीट व इनके अंडे शामिल होते हैं। मिलीबग

एक बहुभक्षी शाकाहारी कीट है। खेतों में कपास की फसल की गैरमौजूदगी में यह मिलीबग अपना निर्वाह कांग्रेस घास, कंघी बूटी, ऊंगा, जंगली चौलाई, आवारा सूरजमुखी, सांठी, धतुरा,कचरी आदि गैरफसली पौधों पर आराम से कर लेता है। इन पौधों पर मिलीबग को किसानों द्वारा अपनी फसल में इस्तेमाल किए गये कीटनाशकों का भी सामना नही करना पड़ता। लेकिन इन्हें यहाँ मांसाहारी कीटों से तो दो-चार होना ही पड़ता है। इन्ही मांसाहारी कीटों में यह सिम्डो और भी सुविधाजनक स्थिति में होती है। क्योंकि इस बीटल के बच्चे रंग-रूप में मिलीबग से मिलते-जुलते होते है। भेड़ की खाल में भेड़िये की मिलीबग की कालोनी में रहकर आराम से मिलीबग के बच्चों को खाते रहते हैं और
मिलीबग को पता तक नहीं चलता। इस बीटल के प्रौढ तो मिलीबग की कालोनियां ढूंढने में लगे रहते है। मिलीबग की कालोनी ढुंन्ढी, इसमें अपने अंडे दिए और अगली पीढी के लिए इनका फर्ज पुरा। इन अण्डों से इस बीटल के बच्चे निकलेंगे। ये बच्चे मिलीबग के बच्चों को चाब कर बेरोक-टोक पलते-बड़ते रहेंगे। जिला जींद के इस गैरफसली-तंत्र जिसका अगुआ आजकल कांग्रेस घास बना हुआ है, पर इस सिम्डो के अलावा कोक्सिनेला, किलोमिनस, क्रिप्टोलेम्स, नेफ़स व ब्रुमस आदि कोक्सिनेलिड कुल की विभिन्न प्रजातियाँ मिलीबग का भक्षण करते हुए किसानों द्वारा देखी गई हैं।

यह बात गौण है कि इनकी रिपोर्ट वैज्ञानिक या गैर-वैज्ञानिक रसालों में हुई है या नही। इस बात का भी कोई मायने नहीं कि इन कीटों कि सबसे पहले रिपोर्ट किसने की। हकीकत तो यह है कि ये आधा दर्जन भर कोक्सिनेलिड परिवार के बीटल अपने बच्चों सम्मेत जींद की धरती पर पिछले चार साल से कपास की फसल को मिलीबग के आक्रमण से बचाने के लिए चुपचाप यहाँ के किसानों की मदद कर रही हैं।



May 06, 2009

कांग्रेस घास पर मिलीबग की अन्डेदानियाँ

कांग्रेस घास पर मिलीबग की इन अन्डेदानियों से इसके बच्चों को कौन चुरा ले गया ?Posted by Picasa

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